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हिन्दू शब्द की व्युत्पत्ति
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पुशरो लबोदे जङ्गीर फेजोयान्।
उरो उरो नम्र लाखियाल् लदे जङ्गेरे
हन्दु जेल् फाल्गो॥१॥
देवाट् देरन् ज, ज़रर् उहे रम्।
कत्लेबे पत्वे देश् तर् गो
हन्दु एन् सां डेरो॥२॥

इस प्रकार ज़ेन्दावस्ता का 'हिन्दव' शब्द पश्तो मे 'हन्द' तक पहुँचा। सिक्खधर्म्म-प्रवर्तक गुरु नानक के सैनिक शिष्यों ने गुरुमुखी भाषा मे उसे 'हिन्दु' कर दिया। नानक के पहले यह शब्द हिन्दव, सिन्धव, हन्दु और हन्द तक रहा। हिन्दु-वंशावतंस सिक्खो ने अन्त में उसे "हिन्दू" के रूप मे परिवर्तित कर दिया। जो लोग कहते हैं कि हिन्दू-शब्द सीमाबद्ध है वे बड़े ही भ्रान्त है। कहाँ फारस, कहाँ यहूदी देश; कहाँ ग्रीस, कहाँ अहासुरस् का राज्य। सब कहीं वही प्राचीन हिन्दू नाम!

इस विवेचना से सिद्ध हुआ कि हिन्दु-शब्द का अर्थ है-विक्रमशाली, प्रभावशाली आदि। सुप्रसिद्ध फरांसीसी लेखक जाकोलियेत (Jaquliethe) ने अपने एक ग्रन्थ मे लिखा है-"असाधारण बल और असाधारण विद्वत्ता के कारण पूर्वकाल मे भारतवर्ष पृथ्वी की सारी जातियों का आदरपात्र था।" जिस हिन्दू-जाति की साधुता, वीरता, विद्या, विभव और स्वाधीनता आदि देख कर पारसी, यहूदी, ग्रीक और रोमन लोग मोहित हो गये और मुसलमान-इतिहास लेखको ने जिस देश को स्वर्ग-भूमि