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अतीत-स्मृति
 


कह कर उल्लेख किया, क्या उसी देश के रहने वाले काफिर काले, ग़ुलाम, कदाकार और परस्तापहारी कहे जा सकते हैं। यह बात क्या कभी विश्वास योग्य मानी जा सकती है? हिन्दू शब्द कदर-बोधक नहीं। हिन्दू-शब्द गौरव, गरिमा, विक्रम और वीरत्व का व्यञ्जक है। तो कहिए, क्या आप अब हिन्दू नाम छोड़ना चाहते हैं? जो ज्ञान, विज्ञान और सर्वशास्त्रीय तत्वों का आदर्श है, जो प्राणशीतलकारी ब्रह्म-विद्या का आकर है, जो विक्रम और विभव की खानि है वही पवित्र और प्रशस्त हिन्दू-नाम हमारे मस्तक की मणि है, हमारे देश का गौरव है, हमारी जाति के महत्व का व्यञ्जक है और वही इस अधःपतित, अर्द्धमृत, पदानत भारतीय आर्य्यजाति के जातीय जीवन का पुनरुद्दीपक है। हिन्दू एक ऐसा शब्द है, एक ऐसा नाम है, जिसके उच्चारण से मग्न हृदय में फिर आशा का सञ्चार हो जाता है; क्षीण देह मे बल-स्रोत फिर वेग से बहने लगता है; अन्तःकरण मे जातीय-गौरव का फिर अभ्युदय हो आता है। और मन में ब्रह्मानन्द का अतर्कित अनुभव होने लगता है। तब हिन्दू-नाम हम छोड़ें क्यों?

[जून १९०६