पृष्ठ:अतीत-स्मृति.pdf/३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४
अतीत-स्मृति
 


रक्षा, किसी न किसी रूप में, अवश्य करती थीं। यदि यह मान लिया जाय कि आर्य्य लोग भारत में कहीं बाहर से आये तो यह बड़े ही आश्चर्य की बात है कि वे अपने पूर्व इतिहास को अपनी प्राचीन भूमि छोड़ने की बात को बिल्कुल ही भूल गये। अध्यापक हापकिन्स का मत है कि अधिकांश वेदमन्त्रों की रचना उन देशों में हुई थी जो पंजाब के पूर्व में हैं। तब यह कैसे कहा जा सकता है कि प्राचीन आर्य्य, सिन्धु नदी को जिसे वे उस समय समुद्रवत् ही समझते थे, पार करके बाहर से भारत में आये? वेदों से यह प्रकट नहीं होता कि भारतीय आर्य्यों को कभी सिन्धु पार करना पड़ा। उस काल के प्रारम्भ में और उससे पहले भी मध्य एशिया का कुछ खण्ड जल के भीतर मग्न था और भारतवर्ष एक द्वीप के सदृश था। बलूचिस्तान और ब्रह्मदेश पानी में डूबे हुए थे। सिन्धु साधारण नदी की तरह नहीं, किन्तु समुद्र की तरह थी। उस समय वही जाति भारत में आने का साहस कर सकती जिसे और कहीं ठिकाना न होता और जिसके ऊपर कोई बड़ी भारी विपत्ति पड़ी होती।

यदि यह कहा जाय कि आर्य्य लोग हिमालय के किसी दर्रे से होकर आये होंगे तो यह बात भी ठीक नहीं मालूम होती। ऐसी हालत में काश्मीर उनके रास्ते में अवश्य पड़ता। अतएव ऐसे रमणीक स्थान को वे अपना उपनिवेश अवश्य बनाते। परन्तु आर्यों के जितने प्राचीन ग्रन्थ हैं उनमें काश्मीर का जिक्र तो दूर रहा, उसका नाम तक नहीं है। आर्य्य लोग पीछे से काश्मीर में