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अतीत-स्मृति
 


उन्होंने, भारत में आने के पूर्व, दिशाओं का कुछ नाम ही न रक्खा था, या उन्होंने दिशाओं का नाम रख तो लिया था, पर भारत में आते ही उन्होने उन नामों को बदल डाला था। मिश्र के प्राचीन निवासियों ने दिशाओं के नाम नील नदी के प्रवाह के अनुसार गढ़े थे। "ऊपरी प्रवाह" से वे उत्तर का मतलब लगाते थे और "नीचे के प्रवाह" से दक्षिण का। यदि प्राचीन आर्य्यों द्वारा रक्खे गये दिशाओं के नामों का पता लग जाता तो उनके पूर्वनिवासस्थल की स्थिति और उनका उसे छोड़ कर आगे बढ़ने का कुछ न कुछ पता भी अवश्य ही चल जाता।

लोगो का खयाल है कि सूर्य्योदय और सूर्य्यास्त के हिसाब से हमारे दिशा-सूचक शब्दो की रचना हुई। पूर्व और पश्चिम, इन दोनों शब्दों से सूर्योदय और सूर्यास्त का अर्थ लिया जा सकता है। परन्तु उत्तर और दक्षिण से सूर्य की गति का कुछ भी संबंध नहीं। यह भी सम्भव नहीं कि आदिम काल मे दिशाओं के लिए जिन शब्दों का उपयोग किया गया हो उनका दिशाओं से कोई सम्बन्ध ही न रहा हो।

'उत्तर' शब्द का अर्थ है ऊँचा। 'उत्तर' शब्द के स्थान में 'उदीच्य' शब्द का भी प्रयोग होता है। उसका भी वही अर्थ है जो 'उत्तर' का है। भारतवर्ष के उत्तर में हिमालय पर्वत है। वह बहुत ऊँचा है। आर्य्य लोग जब और जहाँ से पहिले चले होंगे, हिमालय पर्वत के नीचे अवश्य पहुँचे होंगे तो हिमालय किसी तरह उत्तर दिशा में नहीं पड़ सकता।