पृष्ठ:अतीत-स्मृति.pdf/४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
निवेदन

इस पुस्तक में संग्रहकार के १९ लेख सन्निविष्ट हैं। लेख भिन्न भिन्न समयों में लिखे गये थे और "सरस्वती" नामक मासिक पत्रिका में प्रकाशित हो चुके हैं। जो लेख जिस समय लिखा गया था उस समय का उल्लेख हर लेख के नीचे मिलेगा। जो लेख परस्सर मिलते-जुलते हैं, अर्थात् जिनका विषय कुछ न कुछ पारस्परिक समता रखता है, वे पास ही पास रख दिये गये हैं। इनमें से दो तीन लेख अन्य नामधारी लेखकों के भी हैं। पर उन्हें अभिन्नात्मा समझ कर संग्रहकार ने उनके लेखों को भी इस पुस्तक में स्थान दे दिया है।

इसमें जितने लेख हैं सभी का सम्बन्ध भारत की प्राचीन सभ्यता से है। इस देश का प्राचीन इतिहास यथाक्रम लिपिबद्ध नहीं हुआ। फल यह हुआ है कि हम अपने को भूल-सा गये हैं। जिस समय जगत् के अन्यान्य देश अज्ञानतमसावृत थे उस समय भारत, जातीय जीवन के अनेक अंशो मे, तदपेक्षा बहुत अधिक उन्नत था। यहाँ का साहित्य उच्चश्रेणी का था; यहां की राजसत्ता का कितने ही द्वीपों और अन्य देशों में भी बोलबाला था; यहां के जहाज महासागरों तक का वक्षस्थल विदीर्ण करते हुए देशान्तरों को जाते थे; यहाँ तक कि भारतवासियों ने हजारो