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४-आर्य्यों का आदिम-स्थान

पूना के "केसरी" नामक प्रसिद्ध साप्ताहिक पत्र के सम्पादक पंडित बाल गङ्गाधर तिलक, बी॰ ए॰, एल-एल॰ बी॰ को लोग जितना उनकी विद्वत्ता के कारण जानते हैं उससे अधिक उनको उनके दुर्भाग्य के कारण जानते हैं। जब पहले पहल "केसरी" का जन्म हुआ था तभी एक मान-हानि के मुकदमे में फँसने से उनको कई महीने कारागार-वास करना पड़ा था। १८९७ ईसवी में "शिवाजी के उद्गार" शीर्षक कविता प्रकाशित करने पर उनके ऊपर जो आपत्ति पाई उससे उनका नाम प्रायः सारे भारतवर्ष भर ही में नहीं, किन्तु विलायत तक में हुआ। इस आपत्ति मे कुछ अंश से उद्धार पाने में तिलक जी की विद्वत्ता ही उनकी सहायक हुई। वैदिक साहित्य के वे अगाध पंडित हैं, दूसरे देशों के साहित्य में भी उनकी पारदर्शिता कम नहीं है। इस विपत्ति के पाँच सात वर्ष पहिले उन्होने "ओरायन" (Orion or Researches in the Antiquity of the Vedas) नामक एक पुस्तक लिखी थी। ओरायन का अर्थ है "अग्रहायण"। इसमें उन्होंने वैदिक मन्त्रों की प्राचीनता का प्रतिपादन किया है और ईसा के ६००० वर्ष पहिले की बातें उन्होंने वेदों मे सिद्ध की हैं। इसी पुस्तक पर लुब्ध हो कर अध्यापक मोक्षमूलर ने उनको,