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अतीत-स्मृति
 


सैकड़ो अस्थि-पन्जर बर्फ में गड़े हुए पाए गये हैं। किसी किसी ऐरावत के शरीर मे मांस और चमड़ा भी पूर्ववत् पाया गया है। ये जीव हिम-प्रवाह के समय प्रवाह मे पड़कर जमीन में गड़ गये थे। इसके सिवा भूगर्भ-विद्या के जानने वालों ने हिम-प्रलय के और भी कई प्रमाण पाये हैं। पहले प्रलय को हुए न मालूम कितने हजार वर्ष हुए। इसके अनन्तर और भी कई हिम-प्रलय हुए हैं। इस ऐरावत के दांतो में उसका चित्र भी खोदा हुआ मिला है। चित्र निःसंशय मनुष्य ही के द्वारा खींचा गया होगा। फिर, मित्र देश में कोई आठ हजार वर्ष की पुरानी कबरें मिली हैं। उनके भीतर से पत्थरों के हथियार, कई प्रकार के बर्तन और मनुष्यो के सकेश अस्थि-पञ्जर आदि निकले है। इन बातों से सिद्ध है कि जो लोग मानव-जाति की उत्पत्ति ईसा के चार ही पांच हजार वर्ष पहिले मानते है उनका मत सर्वथा अग्राह्य है। ईसा के कम से कम आठ हजार वर्ष पहले ही मनुष्यों की सृष्टि हो चुकी थी।

तिलक महाशय, अपनी इस नई पुस्तक मे, कहते हैं कि पूर्वोक्त हिम-प्रलय के समय पुराने आर्य हिम-मण्डल को छोड़ कर, कुछ दक्षिण की ओर चले आये थे। वहां आने के कई हजार वर्ष पहले वे मेरु-सन्निहित देश (Arctic Region) अर्थात् उत्तरी ध्रुव के निकट रहते थे। उस समय उस प्रदेश में चिरकाल शरद ऋतु रहती थी। जब शीत का आधिक्य अर्थात् हिम-प्रलय हुआ तब उन्होंने वह देश छोड़ दिया। हिम-प्रलय होने पर मेरु-प्रदेश