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अतीत-स्मृति
 


विशेष बातो का उल्लेख यदि वेदों में मिले तो उससे यह निर्विवाद सिद्ध हो जाय कि वैदिक ऋषि उस प्रदेश से परिचित थे और उनके पूर्वज, किसी समय वहां रहते थे।

उत्तरी ध्रुव में आकाश मण्डल सिर के ऊपर घूमता हुआ जान पड़ता है। यह उत्तरी ध्रुव की खगोल-सम्बन्धिनी एक विशेष बात है। उसका वर्णन वेदों में विद्यमान है। उनमें आकाश के घूमने की उपमा चक्के (पहिए) से दी गई है, और लिखा है कि यह दिव्य मण्डल मानों एक धुरी के ऊपर रक्खा हुआ घूम रहा है।

इन्द्राय गिरो अनिशित सर्गा अयः प्रेरयं सगरस्य बुध्नात।
ये अक्षेणेव च क्रिया शचीभिर्विष्वक्तस्तम्भपृथिवीमुत्तधाम्॥
(ऋग्वेद, मण्डल १०, सूक्त ८६, मन्त्र ४)

इसमें यह कहा गया है कि इन्द्र अपनी शक्ति से पृथ्वी और आकाश को इस प्रकार अलग अलग थामे हुए है जैसे गाड़ी के दोनों चक्कों को उसका धुरा थामे रहता है। तिलक का कथन है कि आकाश का चक्रवत् भ्रमण मेरु-प्रदेश की अवस्था का सूचक है। इस देश के संस्कृत-साहित्य में यह बात ठौर ठौर पर पाई जाती है कि देवताओं की दिन-रात छः महीने की होती है। यह बात पुराणों में भी लिखी है, महाभारत में भी है, और ज्योतिष के सिद्धान्त-ग्रन्थों में भी है। पुराने ज्योतिषियों ने मेरु पर्वत को पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव माना है, और सूर्य सिद्धान्त में लिखा है-

मेरौ मेषादिचक्राधे देवाः पश्यन्ति भास्करम्।

अ॰१२, श्लोक ६७