पृष्ठ:अतीत-स्मृति.pdf/५

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कोस दूर टापुओं तक में अपने उपनिवेश स्थापित कर दिये थे। इन सब बातों का पता पुरातत्ववेत्ता धीरे धीरे लगा रहे हैं। यह उन्हीं देशी तथा विदेशी विद्वानों की खोज का फल है जो हमने शनैः शनैः भारत के प्राचीन गौरव का अल्पस्वरूप ज्ञान प्राप्त किया है।

इस पुस्तक में ऐसे ही लेखों का संग्रह किया गया है जिनमें भारत के प्राचीन साहित्य, प्राचीन याग-यज्ञा, प्राचीन कला-कौशल, प्राचीन ज्ञान-विज्ञान तथा प्राचीन संस्कृति की सूचक और भी कितनी ही विस्मृत बातों की झलक देखने को मिलेगी। लेखों के विषय पुराने अवश्य हैं पर वे प्रायः सभी अज्ञात, अल्पज्ञात अथवा विस्मृत से है। इस दशा में, आशा है, कम से कम केवल हिन्दी जानने वाले सर्व-साधारण जन तो इस संग्रह से कुछ न कुछ लाभ अवश्य ही उठा सकेंगे।

एक बात है। इस लेख-माला में जो कुछ है वह प्रायः सभी औरो की खोज और परिश्रम का फल है। लेखक ने उसे हिन्दी का रूपमात्र दे दिया है। पर यह कोई बड़े आक्षेप की बात नहीं। चम्पू-रामायण में राजा भोज ने लिखा है

वाल्मीकिगीतरघुपुङ्गवकीर्तिलेशै-
स्तृप्ति करोमि कथमप्यधुना बुधानाम्।
गङ्गाजलैर्भुवि भगीरथयत्नलब्धैः
किं तर्पणं न विदधाति जनः पितृणाम्॥