से और ग्रीक के लोगो की प्राचीन गाथाओं से उन्होने ऐसे अनेक वचन उद्धृत किये हैं जिनसे निर्विवाद सूचित होता है कि किसी समय हम लोगों के पूर्वज मेरु-प्रदेश मे रहते थे। यही नहीं, भूगर्भविद्या के अखण्डनीय सिद्धान्तों द्वारा उन्होंने यह भी प्रायः सिद्ध कर दिया है कि मानवसृष्टि का आरम्भ हुए अनन्त काल व्यतीत हुआ। पहले हिम-प्रलय के पूर्व्व प्राचीन आर्य्य उत्तरीय ध्रुव के ठीक आस पास रहते थे और अन्तिम खण्ड-प्रलय हुए कोई १०००० वर्ष हुए।
यहां पर एक शङ्का होती है कि यदि आदिम आर्य्य मेरु-प्रदेश में रहते थे; और वेदो मे जो आकाश-मण्डल, चन्द्र-सूर्य, दिन-रात और उषा आदि का वर्णन है वह यदि उसी प्रदेश का है, तो उन्होने वेदों में कहीं इस बात का उल्लेख क्यों नहीं किया। विचार करने का विषय है कि हम लोगो को जब सौ पचास वर्ष की बात स्मरण नहीं रहती, जब हम, इस समय भी इतिहास की बड़ी बड़ी घटनाओं को भूल जाते है, जब हम अपने पूर्वजो के नाम तक कभी कभी नही बतला सकते, तब यदि हज़ारो वर्ष पहले के अपने निवास स्थान को आर्य भूल जायँ तो क्या आश्चर्य है? फिर, वे एक प्रकार से भूले भी नहीं। वंशपरम्परा से जो कुछ उन्होने सुन रक्खा था उसे उन्होंने वैदिक साहित्य में सन्निविष्ट भी कर दिया। देवरूपी अपने पूर्वजों के दिन-रात और सायं प्रातः आदि का थोड़ा बहुत वर्णन करने मे वे नहीं चूके।
हजारों वर्ष से हम लोग वेदाध्ययन करते आये हैं; परन्तु उनके अध्ययन द्वारा आर्य्यों के आदिम स्थान का पता, आज तक, कोई