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अर्थात् गङ्गा जी को भगीरथ पर ले आये। तो क्या हम उसके जल से पितरों का तर्पण भी न करें?

इस पुस्तक का पहला संस्करण छः सात वर्ष पूर्व निकला था। परन्तु प्रकाशक और मुद्रक दोनों की निःसीम असावधानी से वह अत्यन्त ही विकृत और विरूप दशा में प्रकट हुआ। अतएव उसका प्रकाशन व्यर्थ ही गया, समझना चाहिए। उस कृतपूर्व दोष की मार्जना के लिए, इतने समय तक ठहरने के अनन्तर, अब इसका यह दूसरा संस्करण प्रकाशित किया जाता है।

दौलतपुर (रायबरेली) महावीरप्रसाद द्विवेदी
१९ मार्च, १९३०