कमरे में बैठे बातें कर रहे थे। यह देखते ही राज-दूत क्रोध से जल उठा। उसने आव देखा न ताव, म्यान से तलवार निकाल कर उस असती का सिर धड़ से जुदा कर दिया और यह कह कर वहाँ से चल दिया कि हमारे राजा ने साहब को ऐसा ही पुरस्कार देने के लिये कहा था।
बाली और लम्बक के निवासियो मे जितने हिन्दू हैं वे प्रायः सभी शैव हैं। केवल दो चार बौद्ध हैं। शैव लोग चतुर्वर्ण में हैं। वहाँ वाले उन्हें अपनी भाषा में ब्राह्मण, क्षत्रिय, विषिय और शूद्र कहते है। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि ये शब्द हमारे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ही के परिवर्तित सूचक हैं। बाली-निवासी चतुर्वर्ण को "चतुर्जन्म" कहते है। उच्च जाति के लोग नीची जाति की कन्या के साथ विवाह कर सकते हैं, परन्तु उन्हे अपनी कन्या नहीं दे सकते। यदि ऐसा सम्बन्ध कहीं हो जाता है तो उससे जो सन्तान होती है वह वर्णसङ्कर कहलाती है। असवर्ण विवाह मे कोई बाधा नहीं दे सकता। तथापि ऐसा सम्बन्ध धर्मानुमोदित नहीं समझा जाता। केवल सवर्ण-विवाह ही को वे लोग धर्मानुकूल समझते है। इस हिन्दू-राज्य में जितने नगर और ग्राम हैं उनमें केवल चतुर्वर्ण ही रह सकते हैं। कुम्हार, धोबी, रँगरेज़, चमार और मेहतर आदि नगरों और आमों के भीतर नहीं रह सकते, उनके लिये गाँव के बाहर स्थान नियुक्त होता है। वे लोग वहीं रहते हैं। इन सब जातियों को बाली के चतुर्वर्ण चाण्डाल कहते हैं और उन्हें छूते तक नहीं।