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७-राजा युधिष्ठिर का समय

संसार में विचार और विवेचना की बड़ी जरूरत है। बिना विवेचना के, बिना विचार के, सत्य का ठीक ठीक अनुसन्धान नहीं हो सकता। यदि किसी ने सत्य को पाया है तो विचार और विवेचना ही की बदौलत पाया है। जब किसी बात की विवेचना की जाती है तब बहुधा विवाद उपस्थित होता है। क्योंकि विवेचक जिसकी बात या जिसके मत का खण्डन करता है वह, उसे विपक्षी की विवेचना ठीक न मालूम हुई तो, उसका उत्तर देता है। इस तरह वाद-विवाद बढ़ता और किसी मत या विषय-विशेष की सत्यता की जाँच करने ही की इच्छा से यदि दोनो पक्ष विवाद पर कमर कसते हैं तो उनका मनोरथ सफल भी हो जाता है। इसलिए विवेचना की इतनी महिमा है। जान स्टुअर्ट मिल ने तो अपनी "स्वाधीनता" नाम की पुस्तक में विचार और विवेचना का बहुत ही अधिक माहात्म्य गाया है। उसकी राय है कि किसी मत-प्रवर्तक की यदि सचमुच ही यह इच्छा हो कि उसे अपने मत की योग्यता का यथार्थ ज्ञान हो जाय, और उसे विपक्षी भी मान ले, तो वह अपने ही मतवालो में से किसी को कल्पित विपक्षी बना कर उसके साथ वाद-प्रतिवाद करे। बिना इसके उसे अपने मत की सत्यता पर निश्चय पूर्वक विश्वास नहीं हो सकता।