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राजा युधिष्ठिर का समय
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सिद्धान्त विश्वसनीय होते हैं? क्या कृष्ण-चरित के कर्ता के सब सिद्धान्त भ्रान्तिहीन हैं? क्या पुराणो के प्रक्षिप्त, श्रीकृष्ण की अलौकिक लीलाओं को कपोल-कल्पना और वृन्दाबन-विहार-सम्बन्धी पौराणिक कथा को "अतिप्रकृत उपन्यास" मानने के लिए सब लोग तैयार है? ये सब सिद्धान्त बङ्किम बाबू ही के तो हैं। ये उन्हीं के कृष्ण-चरित मे है।

हमारी प्रार्थना है कि युधिष्ठिर के समय का हमने जरा भी अनुमान नहीं किया। यदि किसी ने किया है तो बङ्किम बाबू और जनरल कर्निहाम ही ने किया है। हमारा अपराध सिर्फ इतना ही है कि हमने कर्निहाम के अनुमान को लिख भर दिया है। इसके लिए हम प्रयाग-समाचार से क्षमा मांगते है। हमने कर्निहाम साहब के अनुमान को दस पांच सतरो मे लिख दिया,मआपने बङ्किम बाबू के अनुमान को कई कालमो मे। हमारे और आपके लेख में फरक इतना ही है।

हमने कर्निहाम साहब के मत की जाँच करने की ज़रा भी कोशिश नहीं की। क्योकि युधिष्ठिर का समय निर्णय करने के अभिप्राय से हमने अपना नोट लिखा ही नही। अतएव उनके उल्लिखित प्रमाणो को पुराणों मे ढूंढने की हमने कोई ज़रूरत नहीं समझी। जिसे युधिष्ठिर के समय का निर्णय करना हो वह उन्हें देखे और यदि कर्निहाम ने अपने अनुमान मे गलतियों की हो तो उनको सुधार दे। यदि प्रयाग-समाचार की यह राय हो कि दूसरे के अनुमान को कोई तब तक नही लिख सकता जब तक उस