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विक्रम-संवत्
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करने की चेष्टा को कि इस संवत् का जो नाम इस समय है वह आरम्भ मे न था पहले वह मालव-संवत् के नाम से उल्लिखित होता था। अनेक शिलालेखो और ताम्र-पत्रो के आधार पर उन्होने यह दिखाया कि ईसा के सातवें शतक के पहले लेखो और पत्रो मे इस संवत् का नाम मालवसंवत् पाया जाता है। उनमे अंकित 'मालवानां गणस्थित्या' पद का अर्थ उन्होने लगाया-मालव-देश की गणना का क्रम। और यह अर्थ ठीक भी है। कोलहान की इस गवेषणा का निष्कर्ष निकला कि सातवे शतक के बाद विक्रम-संवत् का नाम मिलता है, उसके पहले नहीं। पहले वो "मालवानां गणस्थित्या" की सब कही दुहाई है। अच्छा तो इस मालव-संवत् का नाम विक्रम संवत् किसने कर दिया, कब किया और किस कारण किया। डाक्टर कोलहान का कथन है कि ईसा के छठे शतक मे यशोधम्मेन नाम का एक प्रतापी राजा मालवा में राज्य करता था। उसका दूसरा नाम हर्षवर्धन था। उसने ५४४ ईसवी मे हूणों के राजा मिहिरकुल को मुलतान के पास, करूर मे, परास्त करके हूणो को बिलकुल ही तहस-नहस कर डाला। उनके प्रभुत्व और बल का उसने प्रायः समूल उन्मूलन कर दिया। इस जीत के कारण उसने विक्रमादित्य-उपाधि ग्रहण की। तब से उसका नाम हर्षवर्धन विक्रमादित्य पड़ा। इसी जीत की खुशी मे उसने पुराने प्रचलित मालव-संवत् का नाम बदल कर अपनी उपाधि के अनुसार उसे विक्रम संवत् कहे जाने की घोषणा की। साथ ही उसने एक बात और भी