पृष्ठ:अतीत-स्मृति.pdf/८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
विक्रम संवत्
७७
 

प्रकाशित हुए कुछ समय हुआ। उन्होंने पूर्वोक्त कल्पनाओं को निःसार सिद्ध करके यह दिखलाया है कि विक्रमादित्य नाम का एक राजा ईसा के ५७ वर्ष पहले जरूर था। उसने अपने नाम से यह संवत् चलाया। हमने इस विषय के जितने लेख पढ़े है सब मे वैद्य महाशय का लेख हमें अधिक मनोनीति हुआ और अधिक प्रमाण तथा युक्तिपूर्ण भी मालूम हुआ। अतएव उनके कथन का सारांश हम नीचे देते है।

इस संवत् के सम्बन्ध में जितने वाद-विवाद और प्रतिवाद हुए है, सब का कारण डाक्टर कीलहार्न का पूर्वोक्त लेख है। यदि वे यह साबित करने की चेष्टा न करते कि मालव-संवत् का नाम पीछे से विक्रम संवत् हो गया तो पुरातत्ववेत्ता इस बात की खोज के लिए आकाश-पाताल एक न कर देते कि इस संवत्सर का नाम किसने बदला, क्यों बदला और कब बदला। जिन लेखों और ताम्र-पत्रों के आधार पर डाक्टर साहब ने पूर्वोक्त कल्पना की है उनके अस्तित्व और प्रमाणिकत्व के विषय में किसी को कुछ संदेह नही। सन्देह इस बात पर है कि पुराने जमाने के शिलालेखों और ताम्र-पत्रो मे "मालवानां गणस्थित्या" होने ही से क्या यह सिद्ध माना जा सकता है कि इस संवत् का कोई दूसरा नाम न था? इसका कोई प्रमाण नहीं कि जिस समय के ये लेख और पत्र हैं उस समय के कोई और लेख या पत्र कहीं छिपे हुए नहीं पड़े जिनमें यही संवत् विक्रमसंवत् के नाम से उल्लिखित हो? इस देश की सारी पृथ्वी तो छान डाली गई