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अतीत-स्मृति
 


होता है कि ईसा के ५७ वर्ष पहले विक्रमादित्य नाम का कोई राजा ज़रूर था। उसीने विक्रम संवत चलाया। वह मालव-देश का राजा था इसीलिए शुरू शुरू के शिलालेखों और ताम्रपत्रों में यह संवत् मालव-संवत् के नाम से भी अभिहित हुआ है। अब यदि उस समय विक्रमादित्य के अस्तित्व का कोई प्रमाण मिल जाय तो उसके विषय में की गई बहुत सी शंकाओं के लिए जगह ही न रहे।

पुरातत्ववेत्ता ईसा के पूर्व पहले शतक में किसी विक्रमादित्य का होना मानने में बेतरह संकोच करते है। इसलिए कि उस समय का न तो कोई ऐसा सिक्का ही मिला है जिसमे उस राजा का नाम हो, न कोई शिलालेख ही मिला है, न कोई ताम्रपत्र ही मिला है। परन्तु उनकी यह युक्ति बड़ी ही निर्बल है। तत्कालीन प्राचीन इतिहास में उस राजा के नाम का न मिलना उसके अनस्तित्व का बोधक नहीं माना जा सकता। पुराने जमाने के सारे ऐतिहासिक लेख प्राप्त हैं कहाँ? यदि वे सब प्राप्त हो जाते और उनमे विक्रमादित्य का नाम न मिलता तो ऐसी शङ्का हो सकती थी। पर बात ऐसी नहीं है। विक्रमादित्य का नाम ज़रूर मिलता है। दक्षिण में शालवाहन-वंशीय हाल नामक एक राजा हो गया है। विन्सेंट स्मिथ साहब ने उसका समय ६८ ईसवी निश्चित किया है। इस हाल ने गाथा-शप्तशती नाम की एक पुस्तक प्राचीन महाराष्ट्र भाषा में लिखी है। उसके पैसठवें पद्य का संस्कृत-रूपान्तर इस प्रकार है-