पृष्ठ:अतीत-स्मृति.pdf/९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
विक्रम-संवत्
८३
 

सवाहनसुखरसतोषितेन ददता तव करे लक्षम्।
चरणेन विक्रमादित्यचरितमनुशिक्षितं तस्याः॥

इस पद्य में विक्रमादित्य की उदारता का वर्णन है। उसके द्वारा एक लाख रुपये दिये जाने का उल्लेख है। इससे इस बात का पूरा प्रमाण मिलता है कि हाल-नरेश के पहले विक्रमादित्य नाम का दानशील राजा कोई ज़रूर था। अब इस बात का विचार करना है कि इस राजा ने शकों का पराभव किया था या नहीं? इसका शकारि होना यथार्थ है या अयथार्थ?

डाक्टर हार्नली और कीलहार्न आदि का ख्याल है कि मुल्तान के पास करूर में यशोधर्म्मन् ही ने मिहिरकुल को, ५४४ ईसवी मे, परास्त किया था। पर इसका कोई प्रमाण नहीं। यह सिर्फ इन विद्वानों का ख़याली पुलाव है, और कुछ नहीं। उन्होंने अल्वेरूनी के लेखो का जो प्रमाण दिया है उनसे यह बात कदापि सिद्ध नहीं होती। अल्वेरुनी के लेख का पूर्वापर-विचार करने से यह मालूम होता है कि उसके मत से पूर्वोक्त करूर का युद्ध ५४४ ईसवी के बहुत पहिले हुआ था। अतएव इस बात को मान लेने में कोई बाधा नहीं कि विक्रमादित्य ही ने इस युद्ध मे शको को परास्त किया था। इस विजय के कारण वह शकारि नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी समय से और इसी उपलक्ष्य में उसने अपने नाम से विक्रम-संवत् चलाया। यह जीत बहुत बड़ी थी। इसी कारण इसके अनन्तर शको और अन्यान्य म्लेच्छो का पराभव करने वाले राजों ने विक्रमादित्य उपाधि