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अतीत-स्मृति
 


पढ़ने की प्रणाली का कुछ वर्णन है। पर मन्त्रों के महत्त्व और यज्ञों के विधानों का पूरा पूरा वर्णन ब्राह्मण-ग्रंथों ही में है। उन ग्रंथों से मालूम होता है कि अमुक देवता की किस समय और किस मन्त्र से प्रार्थना करनी चाहिए; अमुक मंत्र का कर्ता कौन ऋषि है; पूर्व समय में कब और कौन मन्त्र से कौन यज्ञ किया गया और क्या फल हुवा और किस मन्त्र का उच्चारण किस प्रकार किया जाना चाहिए, इत्यादि। केवल मूल मन्त्र जान लेने से विशेष लाभ नहीं; मन्त्रों के देवता और उनकी प्रक्रिया का भी जानना आवश्यक है। इस बात को जानना तो सब से अधिक आवश्यक है कि अमुक मन्त्र की उत्पत्ति का इतिहास क्या है और पूर्व काल में उसके पाठ से क्या क्या लाभ हुए थे। अध्यापक लेनमन ने अथर्ववेद का एक बड़ा अच्छा संस्करण प्रकाशित किया है। उसमे इस बात का भी उल्लेख है कि कौन सूक्त किस कामना को पूर्ण करने के लिए पढ़ना चाहिए। ब्राह्मण ग्रन्थ तो इन्ही बातों से भरे पड़े हैं। ऋग्वेद के सब मन्त्रों के इतिहास का वर्णन वृहद्देवता नामक ग्रन्थ में है। इस ग्रन्थ के चौथे अध्याय में लिखा है कि दीपोत्मा नामक एक व्यक्ति जन्म ही से अन्धा था। ऋग्वेद के प्रथम काण्ड के कुछ सूक्तो के पारायण से उसे फिर दृष्टि प्राप्त हो गई। वेद-मंत्रों का इस प्रकार का इतिहास, उनके उधारण की विधि और उनके फल का निर्देश यह सारा विषय-समुदाय, पूर्वकाल मे, पुराण या पुराणेतिहास के नाम से उल्लिखित था।