पृष्ठ:अतीत-स्मृति.pdf/९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
पुराणों की प्राचीनता
९१
 


शब्द से तात्पर्य ऐसी सभी बातों से है। वायु-पुराण में पुराण की यह परिभाषा दी गई है।

सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च।
वशानुचरितश्चेति पुराणं पञ्चलक्षणम्॥

महाभारत से भी इसी मत की पुष्टि होती है। मेगास्थनीज के लेखों से भी विदित होता है कि उस समय हमारी जिन पुस्तकों मे सृष्टि की उत्पत्ति आदि का हाल था उन्ही में बड़े बड़े राज-वंशों, राजों और देश का इतिहास भी था। पाटलीपुत्र मे उसने सर्ग-प्रतिसर्ग तथा भारत की अन्य ऐतिहासिक घटनाओ के हाल हिन्दुओ के साथ हो सुना था।

कुछ लोग जब तक किसी बात को वर्णन प्राचीन पुस्तकों में नही देखते तब तक उसकी प्राचीनता स्वीकार करने के लिए तैयार नही होते। "पुराण" शब्द अथर्ववेद और शतपथ-ब्राह्मण आदि ग्रन्थो मे तो पाया जाता है, परन्तु पाणिनि के किसी सूत्र में उसका पता नहीं लगता। परन्तु इससे पुराणो की अर्वाचीनता सिद्ध नहीं होती। पाणिनि ने सारी पुरानी बातों का उल्लेख करने की प्रतिज्ञा थोड़े ही की थी। पुराणों की प्राचीनता ढूँढने के लिए आष्टाध्यायी के सूत्रों की पड़ताल करने की आवश्यकता नही। उसमे न सही, उससे भी पुरानी पुस्तकों मे तो "पुराण" शब्द है।

इस बात का ठीक ठीक पता नहीं लगता कि महाभारत के परिवर्तित होने के पहले पुराणेतिहास का क्या रूप था और उसकी