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अदल-बदल :: १०७
 


बनाना उन्हें उचित नहीं है।'

'यदि चाहे भी जिस उपाय से केवल जीवन को सुखी बनाने को ही जीवन का ध्येय मन लिया जाए तो फिर चोर, डाकू, ठग, अनीतिमूलक रीति से जो धनार्जन करते हैं, शराब पीकर और वेश्यागमन करके सुखी होना समझते हैं, उन्हे ही ठीक मान लेना चाहिए। पर मेरा विचार तो यह है कि सुख-दुःख जीवन के गौण विषय हैं। जीवन का मुख्य आधार कर्तव्य-पालन है। मनुष्य को अपने जीवन में धैर्यपूर्वक कर्तव्य-पालन करना चाहिए। कर्तव्य ही मनुष्य-जीवन की चरम मर्यादा है, इसी की राह पर चलकर बड़े- बड़े महापुरुषों ने सुख-दुःख की राह समाप्त की है, मेरा भी आदर्श वही है।'

'परन्तु दुर्भाग्य से आपके पति के ऐसे विचार नहीं हैं।'

'तो मैं अपनी शक्तिभर उनसे लड़ती रहूंगी। अपने मार्ग से हटूंगी नहीं।'

'यदि वे आपको त्याग दें?'

'पर मैं तो उन्हें त्यागूंगी नहीं--त्याग सकती भी नहीं।'

'क्या आप अपने पति से संतुष्ट हैं? क्या आप उन्हें संतुष्ट रख सकी हैं?'

'इसका हिसाब-किताब तो मैंने कभी रखा नहीं। परन्तु मैंने ईमानदारी से सदा अपना कर्तव्य-पालन किया है।'

'और उन्होंने?'

'उनकी वे जानें।'

'आपके भी कुछ अधिकार हैं विमलादेवी।'

'अधिकारों पर तो मैंने कभी विचार ही नहीं किया।'

'पर अब तो करना होगा।'

'नहीं करूंगी।'

'पर आपके पति अपने अधिकारों की रक्षा करेंगे।'