पृष्ठ:अदल-बदल.djvu/५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
 


हिन्द नहीं बोल सकते, उनकी मातृभाषा अंग्रेजी है। इसलिए 'पति-घर'-नहीं 'पर-घर'- मेंउन्हें अंग्रेजी ही बोलनी पड़ती है। एक उच्चकोटि के पाश्चात्य शिक्षित और उच्च पदाधिकारी युवक में जो दुर्बलताएं शिक्षा, संस्कृति तथा वातावरण के कारण होती हैं, वे सब उनमें हैं । देवीजी का यह पत्र सिर्फ अकेली उनकी आत्मा का स्वर नहीं, सहस्रों बेबस अबलाओं की विकल आत्मा का सरोष रुदन है।

इसमें तो संदेह नहीं हो सकता कि मेरे साथ प्रत्येक सहृदय पुरुष इस तेजस्विनी स्त्री के विद्रोह का अभिनन्दन करेगा, परंतु इस संबंध में कुछ गम्भीर बातें भी विचारणीय हैं, जिन पर हमें विचार करना ही चाहिए।

इस पत्र में सबसे जोरदार जो शब्द प्रयोग में लाया गया है, वह 'पर-घर' है। मैंने किसी स्त्री के मुख से पति-घर को 'पर-घर' प्रथम बार ही सुना है। प्रायः सभी जानते हैं कि स्त्री के लिए पिता का ही घर 'पर-घर' होता है। कुमारी कन्याओं के लिए भी यही कहा जाता है कि वे पराये घर की लक्ष्मी हैं। पति-घर को अपना घर कहने में स्त्रियों को बड़ा गर्व और आनन्द का अनुभव होता है। जो स्त्री पति-घर को 'पर-घर' कहे उसकी अन्तर्वेदना का अन्त नहीं और वह सर्वाधिक अनाथा और निराश्रिता है। भले ही वह पति और परिजनों से संयुक्त ही हो।

दूसरी बात जो इस पत्र में महत्त्वपूर्ण है, वह प्रसव-घटना के प्रति घृणा और तिरस्कार के भाव हैं। भारतवर्ष की स्त्रियां पुत्र- वती होना अपने नारी-जीवन को धन्य होना समझती हैं। यद्यपि पति को पाकर सौभाग्यवती होना हिंदू-समाज में स्त्री का सबसे बड़ा गौरव समझा जाता है, परंतु पुत्र पाकर माता बनना स्त्री का सबसे बड़ा गौरव है। यह हिंदू ललना बड़ी ही विरक्ति और ईर्ष्या से कहती है और मैं प्रति वर्ष सौर-गृह में सड़?