पृष्ठ:अदल-बदल.djvu/६

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तीसरी बात पत्र में पति पर लांछन है-वे मौज-बहार करते हैं, मेरी चिंता नहीं करते, मैं नौकरों के साथ बातें करके समय काटती हूं। उनकी चौथी बात मुझ पर चोट करती है। श्रद्धास्पद देवी मुझे भी सिर्फ पुरुष होने के कारण स्त्री के प्रति एक कट्टर- पंथी कहती हैं। ये चारों बातें ऐसी हैं, जिन पर मैं सार्वजनिक दृष्टि से विचार करना चाहता हूं।

'पर-घर' पर ही विचार कीजिए। भारतीय संस्कृति में हजारों वर्ष से ऐसा होता आया है कि कन्याएं न तो आजीवन कुमारी ही रह सकती हैं, न स्वतंत्र होकर किसी भी प्रकार की आजीविका ही पैदा कर सकती हैं। यद्यपि पाश्चात्य शिक्षा और विचारों के प्रभाव से आज भारतीय उच्च शिक्षा प्राप्त युवतियां कम-से-कम असाधारण देर तक अविवाहिता रहकर स्वतंत्र जीविका के कार्य करने लगी हैं। मैंने यह गम्भीरतापूर्वक देखा है कि इन स्त्रियों का पति और 'पति-घर' को छोड़कर पृथ्वी पर कहीं भी अवलम्बन नहीं है।

हिंदू धर्मशास्त्र में मनु-वणित आठ विवाह-पद्धतियां हैं। पहला सर्वोत्तम ब्राह्म-विवाह है, जिसमें पिता अपनी अलंकृता कन्या को वर को दान देता है। दूसरा देव-विवाह है, जिसमें यज्ञ कराने वाले पुरोहित को दक्षिणा के तौर पर कन्यादान दिया दिया जाता है। तीसरा आर्ष-विवाह है, जिसमें कन्या का पिता एक या दो जोड़ा गाय-बैल लेकर बदले में कन्या दे दे। चौथा प्रजापत्य-विवाह है, जिसमें युवती कन्या और वर कहें कि हम दोनों साथ रहे हैं, और धर्म से पति-पत्नी हैं, उन्हें माता-पिता स्वीकार करें। पांचवां विवाह वर की जाति वालों तथा कन्याबों को धन देकर विवाह करना आसुर है। छठा गान्धर्व है, जिसमें युवती-युवक संगम करके प्रकट करें। सातवां राक्षस-जिसमें रोती-कलपती लड़की को मारकाट करके उठा ले भागें। आठवां