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७२::अदल-बदल
 

वैज्ञानिक किसी विषय पर सामाजिक दृष्टिकोण से विचार नहीं कर सकता। अलबत्ता विज्ञान पर विचार करने का असर समाज पर अवश्य होगा।'

'छोड़िए, ऐसा ही होगा। परन्तु मैं तो फिर मूल विषय पर आता हूं। पतिव्रत धर्म का बन्धन कई शताब्दियों से न केवल हिन्दू स्त्रियों पर है, प्रत्युत मानव सभ्यता के प्रारम्भिक आर्य समु- दाय में भी इसकी विशिष्टता स्वीकार की गई है। इतना ही नहीं, प्राचीन अरबी-फारसियन, ग्रीक, लेटिन, एवं अंग्रेजी साहित्य में भी इसको काफी चर्चा है। हां, यह सत्य है कि, यह ऋमिक रूप से शिथिल-सा रहा है, परन्तु यह रूढ़िवाद का नहीं,वस्तुवाद और विज्ञानवाद का ध्वंसावशेष माना जाएगा। इसमें स्वार्थ पुरुषों का नहीं स्त्रियों का है। क्योंकि यदि पतिव्रत धर्म के पालन में स्त्री को त्याग करना पड़े तो यह मानना ही पड़ेगा कि त्याग की भावना अभी तक यत्किचित् मानवता को कायम रख सकी है। भौतिक या सामाजिक दृष्टि से भी पतिव्रत अनावश्यक नहीं समझा जा सकता।

'अच्छा, तो अब आप मुझे चैलेंज कर रहे हैं ?' मायादेवी ने थोड़ा उत्तेजित होकर, सेठजी को घूरकर कहा।

'चैलेंज नहीं कर रहा हूं मायादेवी, एक सत्य बात कह रहा हूं। सोचिए तो, स्त्री-पुरुष में इहलौकिक नहीं पारलौकिक संबंध भी है। यह पारलौकिक सम्बन्ध की विवेचना केवल साम्प्रतिक आध्यात्मिक, या मानविक वस्तु-परिस्थिति पर नहीं की जा सकती। जो नर-नारी के शारीरिक सम्बन्ध को केवल 'काम' शब्द के व्यापक रूप में ही समझना चाहते हैं, वे भूल करते हैं।'

'भूल कैसे करते हैं--सुनूं तो?'

'निवेदन करता हूं! यह तो आपको मानना पड़ेगा कि भौतिक अभिवृद्धि के लिए ही नारी में नारीत्व का उदय हुआ है।'