पृष्ठ:अदल-बदल.djvu/८९

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अदल-बदल :: ९१
 

'यह तो आपका अन्याय है मालतीदेवी, आप नहीं जानतीं, उसकी पुत्री बीमार है, वह मां को पुकार रही है।'

'तो इसमें मैं क्या करूं?'

'आप दया कीजिए मालतीदेवी!'

'क्या जबरदस्ती?'

'जबरदस्ती नहीं, श्रीमतीजी, मै आपसे प्रार्थना कर रहा हूं।'

'आप नाहक हमारा सिर खाते हैं।'

'लेकिन उसने उचित नहीं किया है, उसे सोचना होगा और आपको भी उसे समझाना चाहिए। सोचिए तो सही, वह एक पति की पत्नी ही नहीं, एक बच्ची की मां भी है।'

'वह अपना हानि-लाभ सोच सकती है, उसे आपकी शिक्षा की आवश्यकता नहीं।'

'है, श्रीमतीजी, है। उसे मेरी शिक्षा की, सहायता की बहुत जरूरत है। वह अपना हानि-लाभ नहीं सोच सकती।'

तो आप चाहते क्या हैं?'

'ज़रा उसे यहां बुलाइए, मैं उससे बात करना चाहता हूं।'

'परन्तु मैंने कहा, वह आपसे बात करना नहीं चाहती।'

'नहीं, नहीं, बात करने में हानि नहीं है।'

'ओफ, आपने तो सिर खा डाला! मैं कहती हूं, आप चले जाइए।'

'मैं उसे ले जाने के लिए आया हूं।'

'आप उसे जबरदस्ती नहीं ले जा सकते।'

'मै उसे समझाना चाहता हूं।'

'वह आपसे मिलने को तैयार नहीं।'

'मै उसका पति हूं श्रीमतीजी, वह मेरी पत्नी है, मेरा उसपर पूरा अधिकार है।'

'तो आप अदालत में जाइए, अपने अधिकार का दावा