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अद्भुत आलाप


योगियों के आठ दर्जे होते हैं। हर योगी को क्रम-क्रम से योग के आठ अंगों की सिद्धि प्राप्त करनी होती है। एक की साधना करके दूसरी में प्रवेश करना पड़ता है। इन योगांगों के नाम हैं--यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि। जो महात्मा पा रहे हैं, उन्होंने आठो अंग सिद्ध कर लिए हैं। मनुष्यों के सामने यह इनकी अंतिम उपस्थिति है। अपना शेष जीवन अब यह एकांत में व्यतीत करेंगे।

"बीस मिनट तक बेहद धूम-धाम और कोलाहल होता रहा। शंख, नरसिंहे और भेरी आदि के शब्दों ने ज़मीन-आसमान एक कर दिया। सहसा सैकड़ों तुरहियों से एक साथ महाकर्ण-भेदी नाद होकर कोलाहल एकाएक बंद हो गया। उस चतुष्कोणाकृति चबूतरे के किनारे आगंतुक साधुओं की भीड़ आने पर सारा गड़बड़ एकदम बंद हो गया। सर्वत्र सन्नाटा छा गया। उस आगत जन-समूह में सब दर्जे के योगी थे। सिर्फ़ पहले दो दर्जे के न थे। वे सब गुलाबी रंग के काषाय वस्त्र धारण किए हुए थे। सबके चेहरों से गंभीरता टपक रही थी। चबूतरे का एक किनारा उनके लिये खाली रख छोड़ा गया था। उसी तरफ़ वे लोग चुपचाप चले गए, और अपनी-अपनी जगह पर जा बैठे। सबसे पीछे तीन योगी एक साथ आए। वे बहुत वृद्ध थे। उनका चेहरा बहुत ही प्रभावोत्पादक था। वे चबूतरे के बीच में आकर उपस्थित हुए।

"सबसे पीछे परमहंस महात्मा दिखलाई दिए। ज्यों ही