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एक योगी की साप्ताहिक समाधि


रहे। तीसरे ने जमीन पर एक सफ़ेद चादर बिछाई। उस पर वह शरीर बड़ी सावधानी से रख दिया गया। देखने से शरीर निर्जीव जान पड़ता था, पर निर्जीव नहीं था। योगीश्वर समाधि-अवस्था को प्राप्त हो गए थे।

"सबसे ऊँचे दर्जे के योगियों की एक टोली तब आगे बढ़ी। वे मिट्टी की एक बड़ी-सी नाँद को थामे हुए थे। यह नाँद पहले ही से आग पर चढ़ा दी गई थी। इसमें गला हुआ मोम भरा था। हरएक योगी के हाथ में एक-एक पैकेट था। उसमें सफेद रंग की कोई चीज़ थी। उसे उन्होंने उस गले हुए मोम में डाल दिया। तब योग के प्रथम पाँच अंगों में पारंगत कुछ योगी योगिराज के शरीर को, जमीन में गाड़ने के लिये, तैयार करने लगे। उन्होंने शरीर को सफ़ेद मलमल से कई दफ़े लपेटा, और कपड़े के दोनो छोर सफ़ेद डोरी से कसकर बाँध दिए।

परंतु इसके पहले उन्होंने समाधिस्थ योगिराज की नाक, मुँह और आँखों को एक विशेष प्रकार से तैयार किए गए मोम से खूब बंद कर दिया था। उन्होंने डोरियाँ पकड़कर धीरे से शरीर को उठाया, और मोम से भरी हुई नाँद में डुबो दिया! फिर उसे निकाला, और कुछ देर अधर में वैसे ही टाँग रक्खा। जब ठंडा होने पर मोम सफ़ेद हो गया, तब फिर शरीर को पहले की तरह उन्होंने नाँद में डुबोया। आठ बार इस प्रकार मज्जन और उन्मज्जन हुआ। इधर यह काम हो रहा था, उधर कुछ योगी शरीर को भूमिस्थ करने के लिये एक गर्त खोदने में लगे थे। कोई