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अद्‌भुत आलाप

योगी बाबू इत्यादि के विषय में हमने जो कुछ लिखा था, उत्तर में उसका बिलकुल ही ज़िक्र हमें ढूँढ़े न मिला। हमारे प्रश्न का समाधान भी न मिला। मिला क्या? उत्तर के साथ काग़ज़ों का एक और पैकेट। उनमें कहीं प्रशंसा-पत्र, कहीं योगासन के चित्र, कहीं कुछ, कहीं कुछ। पत्र में सिर्फ़ यह लिखा था कि 'डालर' भेजिए, तब आपके प्रश्न का उत्तर दिया जायगा, और तभी योग का सबक़ भी शुरू किया जायगा! इस उत्तर को पढ़ कर हमें योगियों की इस सभा से अत्यंत घृणा हुई, और हमने उसके काग़ज़-पत्र उठाकर रद्दी में फेक दिए। सो अब हिदोस्तान की योग-विद्या यहाँ से भागकर योरप और अमेरिका जा पहुँची है, और वहाँ उसने पूर्वोक्त प्रकार की सभा-संस्थाओं का आश्रय लिया है। तथापि यहाँ, अब भी, कहीं-कहीं, योग के किसी-किसी अंग में सिद्ध पुरुष पाए जाते हैं।

मिर्ज़ापुर में एक गृहस्थ हैं। वह गृहस्थाश्रम में रहकर भी बीस मिनट तक प्राणायाम कर सकते हैं। इसी शहर के पास एक जगह विंध्याचल है। वहाँ विंध्यवासिनीदेवी का मंदिर है। मंदिर से कोई दो मील आगे एक पहाड़ पर एक महात्मा रहते हैं। अगस्त, १९०४ में हम उनके दर्शन करने गए थे। एक निविड़ खोह में एक झरना था। वहीं आप थे। आपके पास एक हाँड़ी के सिवा और कुछ नहीं रहता। इससे लोग उन्हें 'हँड़िया बाबा' कहते है। आप संस्कृत के अच्छे विद्वान् हैं, और प्रायः संस्कृत ही बोलते हैं। हमने खुद तो नहीं देखा, पर सुनते हैं, योग के कई