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आकाश में निराधार स्थिति


आश्चर्यजनक दृश्य हमको दिखलाया गया। प्रयोक्ता ने दूसरे बाँस को भी धीरे से खींच लिया, और उस पर रक्खे हुए हाथ को समेटकर लड़के की छाती पर पहले हाथ के ऊपर रख दिया। लड़का पूर्वोक्त गद्दी पर पद्मासन में निराधार बैठा हुआ रह गया। उसके दोनों हाथ छाती पर एक दूसरे के ऊपर रक्खे थे। न उसके नीचे कुछ था, न आगे था, न पीछे था, न इधर था, न उधर था। इस दशा में वह ब्राह्मण लड़के से कोई चार-पाँच फ़ीट की दूरी पर कुछ देर तक खड़ा रहा। तब उसने परदा गिरा दिया, और वह लड़का हम लोगों की नजर से छिप गया। यहाँ पर इस तमाशे का दसरा हश्य समाप्त हुआ।

"जब तीसरी दफ़े परदा उठा, तब हमने उस लड़के को पूर्वोक्त संदूक़ पर लेटा हुआ देखा। कुछ देर में उस ब्राह्मण ने लड़के पर से अपना असर ( उलटे पाश फेरकर) दूर करना आरंभ किया। कोई दो मिनट में लड़का उठ बैठा, और आँखे मलकर उस ब्राह्मण की तरफ़ देखने लगा। इस तमाशे में आदि से अंत तक कोई बीस या पञ्चीस मिनट लगे होंगे।

"मैंने ब्राह्मण से पूछा--क्या तुम किसी और आदमी को भी इसी तरह अपने वश में कर सकते हो? उसने कहा--यदि कोई बड़ी उम्र का आदमी इस बात की कोशिश करे कि मैं उसे अपने वश में न कर सकूँ, अर्थात् उस पर अपना असर न डाल सकूँ , तो उस पर मेरा वश न चलेगा। पर बारह वर्ष या उससे कम उम्र के किसी भी लड़के को मैं अपने वश में कर सकता हूँ--