पृष्ठ:अद्भुत आलाप.djvu/२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८
अद्भुत आलाप


अर्थात् उसे मैं मेस्मेराइज़ कर सकता हूँ। मैंने चाहा कि मैं उसकी आत्मविद्या की परीक्षा लूँ। मैंने दर्शकों की भीड़ में सब लोगों की तरफ़ देखना शुरू किया। मुझे एक लड़का देख पड़ा। वह पास ही के एक गाँव स आया था। वह उस फ़कीर की करामात की जाँच अपने ऊपर कराने को राज़ी हुआ। मैंने उससे कहा--वह आदमी तुमको सुला देने की कोशिश करेगा। यदि तुम नींद न आने दोगे, बराबर जागते रहोगे, तो मैं तुमको एक रुपया दूँगा। ब्राह्मण ने उस लड़के को अपने सामने बिठाया, और उसके चेहरे की तरफ़ निर्निमेष दृष्टि से देखते हुए उसने पाश देना शुरू किया। दो मिनट भी न हुए होंगे कि लड़का गहरी नींद में हो गया।

"मे उन आदमियों में से हूँ, जो भूत-प्रेत, योग, आत्मविद्या और अंतर्ज्ञान आदि में विश्वास नहीं करते। इससे इस बात का पता न लगा सकने के कारण मुझे बड़ा अफ़सोस हुआ--नहीं, क्रोध आया कि किस प्रकार वह लड़का निराधार अधर में बेठा रहा। अतएव मैंने उस ब्राह्मण से कहा कि क्या आप सदर में आकर अपना करतब दिखा सकते हैं? इस बात पर वह राज़ी हो गया। इसके लिये २१ नवंबर, १९०४ का दिन नियत हुआ। मैं सदर को वापस आया। यथा समय वह फ़कीर मेरे बंगले पर हाज़िर हुआ, और वहाँ उसने इस तमाशे को ठीक-ठीक उसी तरह दिखाया, जैसा उसने मुझे दौरे पर दिखाया था। मेरे जितने मित्र उस शहर में थे, उन सबको मैंने इस फ़कीर