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आकाश में निराधार स्थिति


की करामात देखने के लिये बुला लिया था। मैं समझता था कि मेरे मित्रों में शायद कोई मुझसे अधिक चतुर हो, और वह इस साधु की चालाकी का पता लगा सके। मेरे बुलाने से कोई २५ आदमो आए। सबने इस बात की यथाशक्ति कोशिश की कि वे इस ब्राह्मण की करामात का कारण ढूँढ़ निकालें, पर उब हत- मनोरथ हुए। किसी की अक्ल काम में न आई। किसी को चालाकी की कोई बात न देख पड़ी। सब लोगों को मेरी ही तरह हैरत हुई।

"कुछ दिनों के बाद वहाँ एक नए साहब आए। उनसे लोगों ने इस तमाशे की बात कही; पर उनको विश्वास न आया। उन्होंने इसकी असंभवनीयता पर एक लंबा-चौड़ा व्याख्यान दिया, और हम सब लोगों की अवलोकन-शक्ति के विषय में बहुत ही बुरी राय क़ायम की। इससे मैंने उनको भी यह तमाशा दिखाने का निश्चय किया।

"२८ नवंबर को मैंने उस ब्राह्मण को फिर अपने बँगले पर बुलाया, और फिर उसने पूर्वोक्त तमाशे को दिखाया। पर इस दफ़े उसने उन दोनो बाँसों में से एक को तो निकाल लिया, परंतु दूसरे को नहीं निकाला। उस पर लड़के का हाथ रक्खा ही रहा। इसका कारण उसने यह बतलाया कि उस दिन उसकी तबीयत अच्छी न थी, और लड़का भी सुस्त था। इस दफ़े मैंने एक फ़ोटोग्राफ़र को भी बुला लिया था। उसने इस तमाशे के सब दृश्यों का फ़ोटो ले लिया। वह साहब, इस दफ़े, वैसे ही