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अद्भुत आलाप

अमुक अंक इतनी दफ़े आया है। पर इतना करके भी वह अपने हाथ के काग़ज़ को बराबर रँगता ही जाता था। दोनो काम उसके साथ ही होते थे। जब वह उस काग़ज़ के दोनो तरफ़ लिख चुका, तब उस पर उसने उस पंडित के दस्तखत कराए, ओर उसे उसने उस दुभाषिए के हवाले किया। तब उसने वे लिखे हुए प्रश्न माँगे। पंडित महाशय ने अपना हैंडबैग खोला, और अपने प्रश्न गोविंद चेट्टी को उन्होंने सुनाए। उनका अनुवाद दुभाषिए ने तामील में किया। उनमें से कुछ प्रश्न ये थे––

१. मेरी स्त्री का नाम क्या है?

२. मेरा पेशा क्या है?

३. मेरी कविता कौन है?

४. मेरे मन में फूल कौन है?

५. मेरे मन में पक्षी कौन है?

६. मेरी और मेरी स्त्री की उम्र कितनी है?

७. जस्टिस महादेव गोविंद रानाडे इस समय क्या कर रहे हैं?

सब प्रश्न सुनकर गोविंद चेट्टी ने कहा कि मैंने तुम्हारे सब प्रश्नों का उत्तर दे दिया है। तुम उस काग़ज़ को पढ़ो, जिसे मैंने तुम्हारे दुभाषिए के सिपुर्द किया है। याद रखिए, प्रश्न बतलाए तक नहीं गए। पर उनका उत्तर पूछनेवाले के दस्तखत के रूप में सील-मोहर होकर पहले ही से तैयार हो गया! दुभाषिए ने उत्तरों को एक-एक करके पढ़ना और उनका अँगरेज़ी में