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अंतःसाक्षित्व-विद्या


अनुवाद करना शुरू किया। फिर क्या था, पूछनेवाले पंडित महाराज आश्चर्य, आतंक, भक्ति और श्रद्धा के समुद्र में लगे डूबने-उतराने। उनके जितने सवाल थे, उन सबका सही जवाब उनको मिल गया! गोविंद चेट्टी की इस अद्भुत अंत:-साक्षित्व-विद्या को देखकर वह चकित हो गए, और पत्र-पुष्प तुल्य पाँच रुपए उसके सामने रखकर वह उस अलौकिक ज्योतिषी से विदा हुए। उनकी इस भेंट को गोविंद चेट्टी ने प्रेम-पूर्वक स्वीकार कर लिया।

परोक्षदर्शिता का यह उदाहरण इस देश का है। योरप में भी ऐसे-ऐसे उदाहरण पाए जाते हैं। इस समय योरप में कंबरलैंड साहब का बड़ा नाम है। वह कहते हैं---

"मुझमें कोई ऐसी अद्भुत शक्ति नहीं, जो औरों में न हो। किसी सिद्धि, किसी अलौकिक विद्या, के बल से हम दूसरे के दिल का हाल नहीं मालूम करते। जो शक्ति हममें है, वह और भी बहुत आदमियों में होती है, और यदि वे कोशिश करें, तो वे भी दूसरों के मन की बातें जान सकें। दूसरों के खयालात जान लेना एक प्रकार की बहुत सूक्ष्म-स्पर्शन-शक्ति पर अवलंबित है। जब कोई आदमी कुछ खयाल करता है, किसी चीज़ की भावना करता है, तब उस पर कुछ ऐसे चिह्न उत्पन्न हो जाते हैं, जिनसे उस खयाल का पता लग जाता है---भावना की गई उस चीज़ का ज्ञान हो जाता है। कोई आदमी, बिना इस तरह के चिह्नों को प्रकट किए, किसी वस्तु पर अपना चित्त स्थिर