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दिव्य दृष्टि


ही मरे और घायल सिपाही पड़े हुए दिखलाए गए थे। मोरले से पूछा गया, तुम क्या देखत हो? उसने कहा, मैं एक तसवीर देख रहा हूँ, जिसमें बहुत-से सिपाही इधर-उधर पड़े हुए हैं। इस बात को सुनकर कमरे में जितने आदमी थे, सबको आश्चर्य हुआ। इसी तरह की एक और तसवीर के विषय में भी उससे प्रश्न किया गया। इस तसवीर को भी उसने पहचान लिया। याद रहे, यह तसवीर उसकी आँखों के सामने न थी, बल्कि उसके पीछे, सिर को तरफ़, थी। मानो मोरले की आँखें उसके सिर के पीछे थीं, चेहरे पर नहीं। इसी तरह और भी उसकी कई परीक्षाएँ हुईं, और प्रायः सबमें वह पास हो गया। जो तसवीर उसको दिखलाई जाती थी, वह उसकी पीठ की तरफ़, सिर से कोई गज़-भर के फ़ासले पर, रक्खी जाती थी, बहुत पास भी नहीं। तिस पर भी वह उसे पहचान लेता था।

इसके बाद और तरह से भी उसकी परीक्षा लेना निश्चय हुआ। मोरले से कहा गया कि गेट्स कमरे के बाहर चला गया है। यह कथन झूठ था। गेट्स कमरे के भीतर ही था, पर मोरले ने इस बात पर विश्वास कर लिया। उस कमरे में एक घड़ी लगी थी। गेट्स उसके सामने इस तरह खड़ा हो गया कि घड़ी उसले ढक गई। अर्थात् घड़ी का डायल उसकी पीठ के पीछे हो गया, और उसके काँटे लोगों की नज़र से छिप गए। तब मोरले से पूछा गया, बतलाइए, क्या वक्त, है? मोरले ने दीवार पर लगी हुई घड़ी का वक्त ठीक-ठीक बतला दिया।