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दिव्य दृष्टि

इसी तरह और भी कितनी ही परीक्षाएँ हुई। मोरले की नज़र से चिड़ियाँ, मोमबत्तियाँ, तंबाकू, बिल्ली और एक स्त्री, सब चीजें, सिर्फ़ झूठ विश्वास दिलाने ही से अदृश्य हो गईं। एक स्त्री कमरे में आ गई थी। उसके बारे में मोरले से कहा गया कि वह चली गई। इस पर उसने विश्वास कर लिया, और वह स्त्री सचमुच ही उसकी नज़र से ग़ायब हो गई। यहाँ तक कि मोरले जब आराम-कुर्सी से उठकर दूसरी जगह जाने लगा, तब रास्ते में उस स्त्री के पैर से ठोकर खाकर गिरने से बचा!

आध्यात्मिक निद्रा से जगने पर मोरले की यह विलक्षण शक्ति जाती रही।

इन परीक्षाओं से सिद्ध होता है कि जगत् के मिथ्या होने का उपदेश जो वेदांत देता है, वह बहुत दुरुस्त है। इस संसार के सारे पदार्थ मायामय हैं; केवल कल्पना-प्रसूत हैं; उनमें कुछ भी सार नहीं। सब चीज़ों का अस्तित्व केवल ख़याली है। उस ख़याल को किसी तरह दूर कर देने से वे चीज़ें भी आदमी की दृष्टि में प्रभाव को प्राप्त हो जाती हैं। जिसका यह खयाल दृढ़ हो जाता है कि जगत् सचमुच ही मिथ्या है, और उसमें जितने पदार्थ हैं, सचमुच ही काल्पनिक हैं, वह दिव्य दृष्टिमान् हो जाता है। जड़ पदार्थों का व्यवधान उसकी दिव्य दृष्टि को बाधा नहीं पहुँचा सकता।

मार्च, १९०६