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अद्भुत आलाप
५--परिचित्त-विज्ञान-विद्या

बेतार की तारबर्क़ी का प्रचार हुए अभी थोड़ा ही समय हुआ। इसमें तार लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। सिर्फ़ दो यंत्रों से ही काम निकल जाता है। इस तारबर्क़ी के सिद्धांतों को ढूंँढ़ निकालने का दावा तो कई आदमी करते हैं, पर सबमें इटली के मारकोनी साहब हो प्रधान हैं। क्योंकि उन्हीं के सिद्धांतों के अनुसार इस तारबर्क़ी का अधिक प्रचार है। जान पड़ता है, किसी दिन मारकोनी की मिहनत खाक में मिल जायगी। इस तारबर्क़ी की ज़रूरत ही न रह जायगी। लोग एक दूसरे के मन को बात घर बैठे आप-ही-आप जान लेंगे! जो ख़बर जिसके पास चाहेंगे, इच्छा करते ही भेज सकेंगे। जो बात पूछनी होगी, मन-ही-मन पूछ लेंगे। जिस विद्या से ये बाते संभव समझी गई हैं, उसका नाम है 'परिचित्त-विज्ञान-विद्या' इसका ज़िक्र 'अंतःसाक्षित्वविद्या' पर लिखे गए लेख में आ चुका है।

अँगरेज़ी में एक मासिक पुस्तक है। उसका नाम है--'रिव्यू ऑफ रिन्यूज़'। यह पुस्तक बहुत प्रतिष्ठित है। इसके संपादक हैं डब्लू० टी० स्टीड साहब। संसार में आपका बड़ा नाम है। भारत के आप बड़े ही हितैषी हैं। आपने परिचत्त-विज्ञान का, प्रत्यक्ष देखा हुआ, एक वृत्तांत अपने मासिक पत्र में प्रकाशित किया है। उसका सारांश हम यहाँ पर थोड़े में देते हैं। आपकी कथा आप ही के मुँह से सुनिए---