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परलोक से प्राप्त हुआ पत्र


देखकर हम लोगों को बड़ी हैरत हुई। हिंदोस्तान में हम लोगों को योगियों और ऐंद्रजालिकों के करतब देखने के अनेक मौक़े मिले। आध्यात्मिक बातों में हिंदू बहुत बढ़े-चढ़े हैं। हम लोगों ने अनेक देश घूम डाले, पर सबसे पहले हमें हिंदोस्तान ही में ऐसे आदमी देखने में आए, जिन्होंने हमारे परिचित्त-विज्ञान-विषयक कर्तव्यों को देखकर कुछ भी आश्चर्य नहीं प्रकट किया। उन्होंने समझ लिया कि जिन आध्यात्मिक और मानसिक सिद्धियों की खोज और साधना में उनके देशवाले अनंतकाल से लगे आए हैं, उन्हीं में से हमारी परिचित्त-विज्ञान-विद्या भी एक सिद्धि है। यदि ब्राह्मण और बौद्ध विज्ञानी इस विद्या को मानते हों, तो कुछ कहना ही नहीं, अन्यथा हम इसकी कुछ भी कीमत नहीं समझते।

जिस देश के योगी योग द्वारा 'साक्षात् परब्रह्मप्रमोदार्णव' में निमग्न हो जाते हैं, उनके लिये दूसरे के मन की बात जान लेना कौन बड़ा कठिन काम है? पर इस समय ऐसे योगी दुर्लभ हो रहे हैं।

फरवरी, १९०७



६-परलोक से प्राप्त हुए पत्र

एक जमाना वह था, जब कानपुर से कलकत्ते चिट्टी का पहुँचना मुश्किल था, पर यदि पहुँचती भी थी, तो महीनों लग