पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।


गई है। पर उनमे कितने बचे हैं? कितने भूख से तडप कर मरे, कितने जेल में मिट्टी काटते मरे। उनकी स्त्रियों ने जवानी मे विधवा होकर मुझे कोसा। यह माना कि उन पर मेरा ऋण था। पर यदि उन पर नहीं था---सचमुच नहीं था, तो क्या मुझे उन्हें जेल में डलवा देना चाहिये था? पिटवाना चाहिए था? वर्तन कपडं नीलाम करा लेने चाहिए थे? मुझे कमी क्या थी? बुरा किया, गज़ब किया। हे भाइयो, क्षमा करना। अकेला जा रहा हूँ। मृत्यु! मृत्यु! क्या इसमे से थोड़ा भी नहीं ले जा सकता हूँ? थोड़ी सी, सिर्फ़ तसल्ली के लिये। क्या किसी तरह नहीं? हाय! हाय! अच्छा मृत्यु! ले आधा ले ले। इस समय टल जा। सब ही ले जा, पर मुझे छोड़ दे।

हरे राम! तुझे दया नहीं है। कैसी निष्ठुर है, मूर्तिमती हत्यारी है। ऊपर क्यों चढ़ी आती है? ना---ना---छूना मत। हाथ मत लगाना। छूते ही मर जाऊँगा! हाय! हाय! सब यहीं रहे? मैं अकेला चला। कुछ भी पहले से मालूम होता, तो तैयारी कर लेता। भगवान् का नाम जपता, पुण्य-धर्म करता। कुछ भी न कर पाया। विश्राम के स्थल पर पहुँच कर एक सॉस भी अघा कर न ली कि डायन आ गई। हे भगवान्! हे विश्वम्भर! हे दीनवन्धु! हे स्वामी! हा नाथ! हे नाथ! हे नाथ! तुम्ही हो---तुम्ही हो-तुम्ही।


९३