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हाँ, उस दिन को आज सत्रह वर्ष व्यतीत हो गये। उठती जवानी नीचे को ढह गई। पर वह बात आज तक किसी से नहीं कही है। जिस दिन वह बालिका के वेश मे सारे ससार की लज्जा को ऑचल मे समेटे, अपने बचपन और उसके सहचरो को त्याग कर---सहसा जीवन पथ पर मेरे पीछे चल खड़ी हुई थी, पर उस समय मै कुछ कहने के योग्य न था। उसके बाद, जब वह स्त्रीत्व के तेज और प्रभाव को लेकर उस दुर्धर्ष जीवन संग्राम मे-जिसमे योग देने की उसकी लालसा को सुन कर मुझे पहिले हँसी आ गई थी---उद्ग्रीव