पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१५१

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ज्वलन्त सत्व

यह, उस पर्वत की कूट शिखा पर ज्वलन्त सत्व क्या है?

वह क्या जल रहा है?

वहीं तो सदा चन्द्रोदय होता था। और उसकी धवल ज्योतिर्मयी किरणे हृदय के अन्तस्तल तक चॉदनी कर दिया करती थीं। वे तुम्हारे दोनों नेत्र शुक्र और वृहस्पति के नक्षत्रों की भॉति उस चॉदनी मे खिले सहस्रों फूलों को जीवन के उल्लास से परिपूर्ण स्वास लेते देखते थे।

देखो वे फूल अब अन्तिम श्वास तोड़ रहे है, वे पूर्ण विकसित हो चुके, वायु ने उनकी गन्ध बखेर दी, मधुप मकरन्द पी गए, कुछ बखेर गये। अब इनकी इसी रात्रि मे समाप्ति है। प्रातःकाल तक ये सब झड़ कर गिर पड़ेगे।