पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१६०

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बसन्त प्रभात

पक्षी और मनुष्य तो जग गये?

पक्षी चहचहा रहे है,

युवतियॉ गा रही हैं।

गो-दोहन हो रहा है।

मैं तुम्हारी प्रतीक्षा मे बैठा हूँ।

उठो प्यारी, उठो।

धूप तो फैलने लगी।

ओह, आकाश का नील वर्ण कैसा उज्ज्वल है।

सरसों के खिले फूलों की महक लेकर हवा इधर को आ रही है।