पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/१७१

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प्रत्येक ज्येष्ठ को

प्रत्येक ज्येष्ठ के उत्ताप मे मैं भुनता हूं। उस दिन को कितने दिन बीत गये? जब तुम्हारे हाथ का शीतल जल पिया था। प्रत्येक रात को तुम्हारे उसी प्रश्वास से सुरभित वायु मुझे थपकियाॅ देकर सुलाना चाहती है। परन्तु वह जल......... वह शीतल जल.........

प्रेम का रस सूख जाने पर मनुष्य रोते हैं, पर कितने उसके विषय में सोचते हैं।