पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/२७

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एक बार सुनी, दो बार सुनी। तुम तो हाथ धोकर पीछे ही पड़ गई, अच्छा जाओ आज मैं खाऊँगी नहीं, मुझे भूख नहीं है, मेरे सिरमें दर्द है-पेट दुखता है। अपनी ही कहे जाती हो, किसी के दुःख की भी खबर है? यह लो-हँसी ही हँसी। इतना क्यों हँसती हो? हटो, मैं नहीं बोलती। वाह!

मेरी अच्छी बीबी! बड़ी लाड़ो बीबी जी! देखो, भला कही ऐसा भी होता है। राम राम। मै तो लाज से गड़ी जाती हूँ। तुम्हे तो हया न लिहाज। देखो, हाथ जोड़ूँ, धीरे धीरे तो बोलो―हाय! धीरे धीरे। अरे नही, गुदगुदी क्यों करती हो? नोंचो मत जी! तुम्हे हो क्या गया है? कोई सुन लेगा। धकेलो मत, देखो मेरे लग गया, पैर का अँगूठा कुचल गया। हाय मैया! बड़ी निर्दयी हो, मैं तुम्हें ऐसा न जानती थी। अम्मा जी के जाने से तुम्हारी बन आई। अब मालूम हुआ, भोले चेहरे मे ये गुन छिपे पड़े थे! डर क्या है? दिन निकलने दो। सब समझ लूँँगी। आई चलकर धक्का देने वाली। वाह जी! हटो अब तुम मुझे मत छेड़ना, हायरे! मेरा अँगूठा।

न मानोगी? बड़ी पक्के दीदे की हो। अच्छा, नहीं जाते, नहीं जाते, एक से लाख तक। कह दिया, करलो

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