पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
लोभ

बहुत करेगा मार लेगा, गाली दे लेगा, चार आदमियों में फजीहत करेगा। बस? इससे तो हद है? कोई फॉसी तो दे नहीं सकता? मैं तो कौड़ी का देवाल हूँ नहीं। इधर की धरती उधर हो जाय। सूरज साला पच्छिम मे उगने लगे-प्रलय हो जाय, पर इनमे तो दॉत गढ़ने दूँँगा नहीं। अजी “जान है तो जहान है और जर है तो दुनिया घर है।“ कुछ यहीं तो नाल गढ़ा ही नहीं है, अच्छों अच्छों के वतन छूट जाते है। अच्छों अच्छों को परदेश रहना पड़ता है इसमे पशोपेश क्या? काम बनाया और सटक सीताराम। कहा भी है―“देश चोरी