पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/७१

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सब्र करो---सब्र। सब्र। तब तक तुम अपने बच्चे को मलाई खिलाओ। अजीर्ण बढ़ाओ। बढ़ाओ। और मेरा युद्ध कौशल वीरता, यदि देखनी हो, तो आओ मैदान मे---देखो, लड़ने क नहीं, देखने को। सॉपों का लड़ने का काम नहीं है। वे तो अंँधेरे में-जहां पैर पड़ा-बस वहीं काट लेने के मतलब के हैं। अच्छा जाने दो। मैं फतह करके आता हूँ। देखो, जिस धन को, जिस सोने के ढेर को तुम छाती में छिपाये उसकी आराधना कर रहे हो, उसे मॉ, बाप, भैया, लुगाई, चाची, ताई, नानी, नाना समझ रहे हो, उसी पर---हाँ उसी पर---चाहे वह तुम्हारा कुछ ही क्यों न हो---बिना किसी तरह का लिहाज़ किये उसी ढेर की छाती पर पैर धरके ताण्डव नृत्य करूंँगा। अपनी स्त्री की हड्डियों की ठठरियों की मैंने 'भोगली' बनाई है और अपने बच्चे की कच्ची खाल से उसे मॅढ़ लिया है। यह है मेरा डमरू। वह बजेगा ढम ढमाढम। दिग्दिगन्त गूंँज उठेंगे। फिर मेरा थिरक थिरक कर ताण्डव नृत्य होगा। हा! हा! हा! ताण्डव नृत्य होगा। फिर, नाच कर, उसी ढेर को ठुकरा कर, जूतों में कुचल कर फेंक दूगा। उस पर थूक दूंगा। ऊस पर पेशाब कर दूंगा। तब जी चाहे तो ले जाना। लूट कर ले जाना, ऑख बचाकर ले जाना। धन है, वह लात मारने से, थूकने से, मूतने से मपवित्र-अपमानित तो हो नहीं