पृष्ठ:अपलक.pdf/१०

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छ काव्य-साहित्य में जो एकाकीपन, पीड़ावाद और विवशता है, उसकी विवेचना वैज्ञानिक फ्रायडीय जायावाद और समाजवाद के सिद्धान्तो के अनुसार यदि हो तो उस एकाकीवाद, पीड़ावाद और विवशतावाद की प्रेरणाएं स्पष्ट हो जायंगी । अच्छा, भाई ! यही करो। सब फ्रायडीय विचार का लैंगिक तत्व और समाजवादी विचार का पूँजीवादी समाज में प्रचलित व्यक्ति-पारतन्न्य-तत्व-ये दोनों प्रमाण के रूप में उपस्थित किये जाते हैं और कहा जाता है कि देखो, पूँजीवादी समाज मे जो यह व्यक्ति-स्वातन्त्र्य का अभाव है और इसके फलस्वरूप जो लैगिक मिलन-बाधा उपस्थित होती है उसी के कारण हिन्दी-काव्य में पीड़ा, निराशा और एकाकीपन का आविर्भाव हुआ है। पूँजीवादी समाज में मनुष्य क्रीत दास बन जाता है। वह एक पण्य वस्तु के अतिरिक्त और कुछ नही रह जाता। इस प्रकार मानव मानव के बीच का सम्बन्ध भयानक अस्वस्थ अवस्था को पहुंच जाता है । तब जो सङ्घदय व्यक्ति हैं वे तड़प उठते है और अपने प्रिय के कल्पित कुन्तल संवारते- सँवारते रो पड़ते हैं। इस प्रकार वेदना मूलक रहस्यबाद और एकाकीवाद की सृष्टि होती है। पर, दूसरी ओर, मार्क्स-बाबा-वाक्यं प्रमाणम् के सिद्धान्त को ही मानने वाले यह कह उठते है कि नही जी, पूजीवाद जिस साहित्यिक अफीम को बॉटता है वह विवशता-जन्य नही है। अतः हिन्दी के पीड़ाबादी साहित्य के लिए यह बात पूर्ण रूप से लागू नहीं होती । पूँजीवाद तो मजदूर-वर्ग को दासत्व शृङ्खला में जकड़े रखने के लिए दूसरी ही तरह का साहित्य प्रसारित करता है । हाँ वर्तमान हिन्दी साहित्य, विशेषकर काव्य-साहित्य में पलायनवाद है अवश्य, और वह इस कारण कि हिन्दी-कवियो का वैज्ञानिक सामाजिक दृष्टिकोण दूषित हैं । इस प्रकार का शब्द-जाल क्या वास्तविक साहित्यालोचन है? क्या हम पूछे कि क्यों भाई, क्या रूस में अन्तर्वेदनामय साहित्य का सृजन नही होता ? क्या रूसी युवक मनचाही युवती को प्राप्त कर आनन्द उठा सकता है और इस कारण क्या वह अपनी प्रेयसी के आगमन की बाट उत्सुकता-पूर्वक नहीं जोहता १और यदि ऐसा है तो क्या उस सीमा तक रूसी मनःस्तर नितान्त रस- हीन, उकट कुकाठ, असंस्कृत एवं जड़ नहीं हो गया है ? और क्यों मित्रो, जब सूर बाबा ने 'पिया बिन नागिन कारी रात' जैसे अनेक गीत लिखकर बेदनामय साहित्य का सृजन किया वह क्या इस कारण कि उस सामन्तशाही युग में व्यक्ति-व्यक्ति का सम्बन्ध पण्यमय हो गया था ? अथवा, फ्रायडीय यौन सम्बन्ध में गोकुल-मथुरा का अन्तराय आ गया था ? यह बात तो सोचो, भाइयो, कि आत्यन्तिक सन्निकटता के होते हुए भी, दो हृदयो मै टीस, पीड़ा, वेदना उठ सकती है और मुखरित हो