पृष्ठ:अपलक.pdf/१०३

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बढ़ रहा है भार मेरा आप ही हलका हुआ था टोह का सब भार मेरा था समर्पित तव चरण में सफल हा-हा-कार मेरा टोह का संभार मेरा। १ एक दिन तुम विहँसते-से, मुझ अयाचित की डगर में----- जब पधारे थे, मची थी धूम तब मेरे नगर में; उस समय मम भाग्य की ही बात थी प्रत्येक घर में; लोग कहते थे कि अब तो हो गया उद्धार तेरा'- अब कहाँ वह भार मेरा? २ किन्तु बरबस पड़ गया हूँ आज तुम से दूर, प्रियतम, वक्र-सी है भाग्य-रेखा है परिस्थिति क्रूर, प्रियतम, मम मनोरथ हो रहे हैं आज चकनाचूर, प्रियतम; शून्य फिर से हो गया है वह बसा संसार मेरा; फिर बढ़ा है भार मेरा। प्रवासी