पृष्ठ:अपलक.pdf/१०५

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श्रा जाओ; प्रिय, साकार बने मेरे जीवन के चिर सुन्दर सपने, आओ साकार बने ओ मेरे स्नेहादर्श रुचिर, श्राओ, जीवन-व्यवहार बने । १ मेरे प्रियतम, मेरे सुजान, मम मन-अम्बर में भासमान- मेरे हिय के स्पन्दन स्वरूप, रवि-शशि-सम-चमको, ओ अरूप, मेरी पूजा के निरत ध्यान, नभ गंग-धार से उमड़-छहर, मेरे मानस-नन्दन अनूप, आ जाओ जीवन-धार बने। अब तो आओ साकार बने । २ यह मेरी शाश्वत टोह श्राज, रवि ढला; सज रहा सान्ध्य-साज; है अमित श्रान्त, हैं शिथिल पंख, निशि आएगी; मैं हूँ सशंक, रख लो, प्रिय, मेरी लाज आज, यह भी क्या नाराजी प्रियवर ? देखो, है मेरी शून्य अक; आओ मेरे हिय-हार बने । अब तो आयो साकार बने। नब्बे