पृष्ठ:अपलक.pdf/१०७

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विस्मरण सजन के लिये तो सरल विस्मरण है, हमारे लिये, किन्तु, वह तो मरण है, ? बहती चली जा रही काल-नद-धार, जिसमें तरंगित यही एक स्वर भार; कल-कल कलिल पूर्ण तेरा सकल प्यार, तेरे लिये है कहाँ स्नेह रस-सार ? तूने किया वासना का वरण है, तभी तो सजन ने किया विस्मरण है। २ हवा जो पधारी सनकती, बहकती-- परिन्दों की टोली जो आई चहकती- बानचे