पृष्ठ:अपलक.pdf/१०८

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अपलक कलियों की लज्जा जो छूटी महकती, तो गोया हमें सुध य' आई दहकती : य जीवन है ? यह तो मरण-सन्तरण है। सजन ने हमारा किया विस्मरण है ! जिला जेल, उसाव, दिनाङ्क ३ जनवरी १६४३ तिरानवे